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lab techniques in chemistry fact | लैब टेक्निक्स इन केमिस्ट्री

lab techniques in chemistry fact | लैब टेक्निक्स इन केमिस्ट्री
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Lab techniques in chemistry fact | लैब टेक्निक्स इन केमिस्ट्री

Lab techniques in chemistry fact

1:- द्रव की छोटी बूंदे गोलाकार क्यों होती हैं ?

पृष्ठ तनाव का गुण है कि द्रव न्यूनतम क्षेत्रफल में रहने की चेष्टा करता है। इसी गुण के कारण किसी द्रव की बूंदें न्यूनतम क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए अपना गोल बना लेती हैं। चूंकि गोलीय पृष्ठ का क्षेत्रफल न्यूनतम होता है। अतः द्रव की छोटी बूंदे गोलाकार होती हैं। lab techniques in chemistry

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2:- साइनाइड से तत्काल मौत क्यों हो जाती है ?

जैविक क्रियाओं को चलने के लिए एक आवश्यक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। यह ऊर्जा भोजन के अणुओं जैसे ग्लूकोज के दहन या ऑक्सीकरण से मिलती है। ऑक्सीकरण यानी भोजन के अणुओं में इलेक्ट्रोनों का निकल जाना और पानी के निर्माण के लिए ऑक्सीजन द्वारा उनका ग्रहण। इलेक्ट्रोन स्थानान्तरण की इस क्रिया में सिटोफ्रोम ऑक्सीडेम एंजाइम सहायता करता है। इस एंजाइस में एक हेम ग्रुप होता है। lab techniques in chemistry

जिसके केन्द्र पर लोहे का आयन रहता है। यह आयन भोजन के अणुओं से इलेक्ट्रोन को हटाकर और ऑक्सीजन अणुओं को उनका दान करके दो स्थितियों के बीच घूमता रहता है। इन दोनों स्थितियों में साइनाइड आयन की लौह आयन के प्रति आकर्षण शक्ति रहती है। इसीलिए साइनाइड आयन प्रबल रूप से लौह आयनों से बद्ध हो जाते हैं। जब क्रिया पूरी हो जाती है तो एंजाइम निष्क्रिय हो जाता है और जैविक ऑक्सीजन की जीवन दायिनी प्रक्रिया के उत्प्रेरण में अक्षम हो जाता है। ऊर्जा की आपूर्ति नहीं होने से सारी क्रियाएं ठप पड़ जाती हैं और मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

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3:- नमक खाने से प्यास लगती है, क्यों ?

नमक खाने पर शरीर की कोशिकाओं का जल गुर्दो की ओर आ जाता है जिससे शरीर के अन्य भागों में पानी की अस्थाई कमी हो जाती है। जिसकी पूर्ति के लिए हमें प्यास लगती हैं।

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4:- रोशनी की ओर कीट पतंगे क्यों आते हैं ?

उन्नीसवी सदी के अन्त में पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय के एस . डब्ल्यू. फास्ट ने इस विषय का अधययन काफी गहराई से किया था। बाद में फ्रांस के जे. एच. फैबरें ने इस खोज को आगे बढ़ाया और इसका उचित विवेचन किया। वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ प्रकाश स्रोतों से विशेष प्रकार के विकिरण निकलते हैं। मादा कीटों के पेट में एक ऐसी ग्रंथि होती है जिससे विशेष गंध वाले फीरोमोंस विकिरण निकलते हैं जो वायु में फैल जाते हैं। lab techniques in chemistry

नर कीट इन विकिरणों की पहचान कर लेते हैं और वे मादा कीटों को पाने की इच्छा से उसकी ओर आकर्षित होते हैं। मादा के शरीर से निकलने वाले विकिरणों की भाँति ही प्रकाश स्रोत से भी विकिरण निकलते हैं। जिससे नर कीटों को मादा कीटों की उपस्थिति का भ्रम हो जाता है और इसी भ्रम में प्रकाश की ओर खिंचने लगते हैं।

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5:- तारे हमें टिमटिमाते नजर आते हैं, क्यों ?

वायुमण्डल में विभिन्न घनत्व वाली परतें होती हैं। तारों से चलने वाला प्रकाश इन विभिन्न परतों से होता हुआ हम तक पहुंचता है। इस दौरान प्रकाश की मात्रा परतों के कारण घट – बढ़ जाती है। साथ ही वायु की परतें हिलती रहती हैं। इसीलिए तारे हमें टिमटिमाते नजर आते हैं। lab techniques in chemistry

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6:- रोते समय आंसू आते हैं, क्यों ?

हम जब भी रोते हैं या खुशी के मौके पर हमारी आँखों में आंसू आ जाते हैं। हमारी आंखों के बाहरी कोण के करीब 6 अश्रु या लेक्रियल ग्रंथियां होती है। इनसे स्रावित जल सदृश अश्रु, पलकों, कार्निया और कन्जक्विटा को नम बनाए रखता है और इनकी सफाई करके हानिकारक जीवाणुओं से रक्षा करता है। चोट लगने या किसी बाहरी वस्तु के आंख में गिर जाने या दुःख या सुख की भावनाओं से प्रेरित होकर आंसू अधिक मात्रा में स्त्रावित होकर बहने लगते हैं। जन्म के करीब 4 महीने बाद मानव शिशु में अश्रु ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं। lab techniques in chemistry

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7:- सूर्य की गर्मी से पत्तियां गर्म नहीं होती, क्यों ?

कितनी भी तेज गर्मी क्यों न पड़े, पेड़ – पौधों की पत्तियां गर्म नहीं होतीं। दरअसल ये पत्तियां सूक्ष्म कोशिकाओं की अनेक परतों से मिलकर बनी होती हैं। प्रत्येक पत्ती की कोशिकाएं ऊपर और नीचे की ओर बाह्य त्वचाओं से ढकी होती हैं। इन त्वचाओं में छोटे – छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं। ये रंध्र वाल्व की तरह काम करते हैं। साथ ही ये पत्ती और वायुमण्डल के बीच गैसों के विनियम पर नियंत्रण रखते हैं। इन्हीं रंध्र से पत्ती के भीतर की ऑकसीजन और जलवाष्प बाहर आती है। जब रंध्र बंद हो जाते है तो गैसों का विनियम रुक जाता है। यही रंध्र पत्तियों के तापमान को सामान्य बनाए रखते हैं।

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8:- जन्तुओं को रात में कैसे दिखलाई देता है ?

बिल्ली, गाय, भैंस आदि जन्तुओं तथा अन्य रात्रिचर जन्तुओं के नेत्रों के रक्त पटल में रेटिना के ठीक बाहर की ओर चांदी के समान चमकते हुए संयोगी ऊतक की या गुआनिन या अन्य रंगों के पदार्थ के कणों की एक विशेष परत होती है। अनेक इलेस्मोबैन्क मछलियों में यह परत रेटिना की रंग एपीथीलियम की कोशिकाओं में गुआबिन कणों के स्तर के रूप में पाई जाती है। इस रंग परत को रैपीडम लूसिडम कहते हैं। यह परावर्ती होती है और रेटिना पर अतिरिक्त प्रकाश किरणें फेंकती है। इसी से रात में इन जंतुओं की आंखे चमकती हैं और इन्हें धीमी रोशनी में भी दिखाई देता है।

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9:- जाड़ों में पहाड़ी चट्टानें फट जाती हैं, क्यों ?

जाड़ों में देखा गया है कि पहाड़ी चट्टानें फट जाती हैं, दरअसल चट्टान के छिद्रों और दरारों से होकर पानी भीतर चला जाता है। जाड़ों में जब पानी जमकर बर्फ बनता है तो उसका आयतन बढ़ जाता है। जिससे भीतरी दबाव सीमा से अधिक बढ़ जाता है और चट्टानें फट जाती हैं।

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10:- कपूर पानी में नाचता क्यों हैं ?

कपूर पानी में घुलनशील है। पानी में जब कपूर घुल जाता है तो पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाता है। इसीलिए पानी की सतह पर जहां कपूर रहेगा, वहां पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाएगा। शुद्ध पानी की सतह जहां पृष्ट तनाव अधिक है, कपूर को अपनी ओर आकर्षित करेगा। अतः कपूर उस ओर जाएगा। जहां आने पर उस पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाएगा तथा वह फिर से दूसरी ओर जाएगा। यही क्रिया बार – बार होती रहेगी और कपूर नाचता रहगा।

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11:- हमारे हाथों में उभरी हुई नसें जिनमें से खून बहता है, वे बाहर से नीली या हरी क्यों दिखाई देती हैं ?

रक्त में होमोग्लोबिन नामक लाल पदार्थ होता है। जिसकी विशेषता है कि यह कार्बन डाईआक्साइड तथा ऑक्सीजन दोनों के साथ प्रतिवर्त्यता से जुड़ सकता है। होमोग्लोबिन जब शरीर के ऊतकों से कार्बन डाईऑक्साइड को ग्रहण करता है तो वह कार्बोक्सी होमोग्लोबिन कहलाता है। कार्बोक्सी होमाग्लोबिन वाला रक्त अशुद्ध रक्त होता हे जो शिराओं से होकर फेफड़ों तक पहुंचता है। फेफड़ों से सांस लेने की प्रक्रिया में होमोग्लोबिन कार्बन डाईऑक्साइड को छोड़कर शुद्ध आक्सीजन ग्रहण करता है।

यह शुद्ध रक्त धमनियों द्वारा कोशिकाओं तक पहुचता है। अशुद्ध रक्त का रंग नील – लोहित या बैगनी होता है। शिराओं की भित्त्यिा पतली होती हैं और ये त्वचा के ठीक नीचे होती है। इसीलिए ऊपर से शिराओं को देखना आसान होता है। अशुद्ध नील – लोहित रंग के रक्त के कारण शिराएं हमें नीले रंग की दिखाई देती हैं। शिराओं की तुलना में धमनियों की भित्ति अधिक मोटी होती है और काफी गहराई में स्थित होती है। इस कारण लाल रक्त प्रवाहित होने वाली धमनी हमें दिखाई नहीं देती है।

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12:- हमें प्यास क्यों लगती है ?

हमारे शरीर में पानी की एक निश्चित मात्रा होती है। शरीर में पानी की उपस्थिति आवश्यक भी है क्योंकि पानी द्वारा ही हमारे शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और अनेक प्रकार के निरर्थक पदार्थ शरीर से बाहर निकलते रहते हैं। पसीने के रूप में, मूत्र के रूप में और कुछ श्वसन क्रिया के माध्यम से पानी शरीर से बाहर निकलता रहता है। मस्तिष्क में स्थित एक छोटा – सा प्यास केन्द्र ‘हाइपोथेलेमस’ शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखने के लिए एक प्रकार का हार्मोन स्रावित करता है। lab techniques in chemistry

ये हार्मोन गुर्दे और गले में स्थित तंत्रिकाओं को नियंत्रित करते हैं प्यास का अनुभव भी इसी केन्द्र की क्रियाओं का एक भाग है। शरीर में आधा लीटर पानी की कमी होने से प्यास का अनुभव होने लगता है। जैसे – जैसे इसके और भी लक्षण दिखाई देने लगते हैं। जैसे मुंह का सूखना और उस पर एक परत भी बन जाती है। शरीर में 5 लीटर या उससे अधिक पानी की कमी खतरनाक होती है।

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13:- दूध में खटाई डालने से वह जम क्यों जाता है ?

दूध में खटाई डालने पर वह जमता नहीं बल्कि फट जाता है। दूध का फटना और जमना दो अलग – अलग क्रियाएं हैं। ऊपर से देखने पर शायद वे एक – सी ही लगें। पर उनमें अन्तर है। जब हम दूध में नीबू का रस या अन्य कोई खट्टी वस्तु डलते हैं, तो दूध फट जाता है और पनीर बन जाता है। फटने से दूध में उपस्थित पानी अलग हो जाता है। बचे हुए हिस्से को छैना ( पनीर ) कहा जाता है। लेकिन जब दूध में जमावन ( दही का थोड़ी – सी मात्रा ) डाला जाता है, तो दूध जम जाता है । ये दोनों ही क्रियाएं वास्तव में बैक्टीरिया के कारण होती हैं।

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यह दोनों ही क्रियाएं वास्तव में बैक्टीरिया के कारण होता है। शायद आप जानते ही होंगे कि बैक्टीरिया या जीवाणु एक कोशीय वनस्पति है। ये आकार में इतनी सूक्ष्म होती हैं कि इनको नंगी आंखों से देखना असंभव है। बल्कि ये बीच की तरह अनगिनत स्पोर पैदा करते हैं। ये स्पोर प्रतिकूल परिस्थितियों में कई सालों तक ऐसे ही पड़े रहते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में इनसे नए जीवाणु बनते हैं। lab techniques in chemistry

जब हम दूध में खटाई डालते हैं तो एक तरह से दूध में मौजूद एक खास किस्म के जीवाणु ( स्ट्रेप्टोकोकस लेक्टिस ) के लिए अनुकूल परिस्थितियां तैयार करते हैं। यह जीवाणु सक्रिय होकर दूध से पानी को अलग कर देते हैं। और दूध को रासायनिक एवम् परमाणिवक रचना को बदलकर एक नया रूप दे देते हैं। इस नए रूप को हम छैना या पनीर के नाम से पुकारते हैं। छैने में दूध की सारी वास और दूध के मुख्य प्रोटीन ( केसीन ) रहते हैं। अलग हुए पानी में भी कुछ प्रोटीन, शक्कर और कुछ घुलनशील लवण होते हैं। दूध का जमना भी एक ऐसी ही प्रक्रिया है।

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14:- क्या कारण है कि उच्च सामर्थ्य का विद्युत हीटर मेन्स से लगाने पर घर में जल रहे अन्य बल्वों की रोशनी कुछ मंद पड़ जाती है ?

घर में सभी विद्युत उपकरण समानान्तर क्रम से लगे होते हैं। अतः उच्च सामर्थ्य का विद्युत हीटर मेन्स से लगाने पर हीटर में उच्च धारा प्रवाहित होती है। जिससे मेन्स से आने वाले तारों में अत्यधिक विभव पतन हो जाता है। फलस्वरूप बल्ब के सिरों पर विभवान्तर का मान कम हो जाता है। अतः बल्बों की रोशनी कुछ कम हो जाती है।

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15:- ठण्डे दिनों की तुलना में गर्म दिनों में कार इंजन को चालू करना आसान होता है, ऐसा क्यों ?

ठण्डे दिनों में बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध अधिक तथा गर्म दिनों में कम होता है। इस प्रकार ठण्डे दिनों की तुलना में गर्म दिनों में बैटरी से अधिक धारा प्राप्त होती है। अतः कार इंजन को चालू करना आसान हो जाता है।

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दिमाग हिलाने देने वाले 30+ मज़ेदार रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About World In Hindi
30 Interesting Facts About World In Hindi

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16:- हम टेप रिकार्डर से निकली अपनी ही आवाज को क्यों नहीं पहचान पाते ?

जब हम बोलते हैं तो हमारे ध्वनि तन्तुओं से निकली ध्वनि तरंगे दो अलग – अलग रास्तों से होकर हमारे कान तक पहुंचती हैं। एक तो वायु की तरंगों के माध्यम से होकर पहुंचती हैं और दूसरी हमारे जबड़े की हड्डियों और भीतरी कान के बीच कम्पन से पहुँचती हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ध्वनि जो हम सुनते हैं वह दो प्रकार के कम्पनों के परस्पर मिलने से बनी होती है। lab techniques in chemistry

जब हम अपनी ही आवाज टेपरिकार्डर से सुनते हैं तब ऐसा नहीं होता। उस समय आवाज केवल वायु माध्यम से होकर आती है। यही कारण है जब हम अपनी आवाज टेप रिकार्डर से सुनते हैं तो वह हमारी वास्तवकि आवाज से थोड़ा अलग होती है, इसीलिए पहचानना मुश्किल होता है।

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17:- ताली बजाने पर आवाज क्यों उत्पन्न होती है ?

हवा में विद्यमान अणुओं के कम्पन के कारण ही आवाज उत्पन्न होती है। किसी ध्वनि के सुनने योग्य या श्रवणीय होने के लिए यह आवश्यक है कि अणुओं की कम्पन आवृत्ति की सीमा 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज तक हो। इसके साथ ही ध्वनि की तीव्रता भी इतनी होनी चाहिए कि वह हमारे कानों में संवेदन उत्पन्न करने में सक्षम हो।

अतः हम जब भी हाथों से ताली बजाते हैं तो ताली बजाते हाथों के चारों ओर के दाब में एक तीव्र परिवर्तन होता है जिससे हवा के अणुओं का कम्पन श्रवणीय तरंग परिसर तक पहुंच जाता है। इस सबसे दाब में परिवर्तन इतना बड़ा होता है कि उससे उच्च तीव्रता की प्रघाती तरंगें उत्पन्न होती हैं और हम आवाज को सुन सकते हैं।

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18:- सभी ट्यूब लाइट देखने में एक – सी लगती हैं परन्तु जलने के पश्चात लाल, हरा, या कोई और रंग देती हैं। ऐसा क्यों ?

ट्यूब लाइट में प्रयुक्त कांच की नली की भीतरी सतह एक विशेष प्रकार के पदार्थ से लेषित होती है। इस पदार्थ को प्रतिदीप्त शील पदार्थ या फॉस्फर कहते हैं। ट्यूबलाइट की नली में उत्पन्न पराबैंगनी किरणें इस पदार्थ से टकराकर रोशनी उत्पन्न करती हैं। रोशनी का रंग इसी प्रतिदीप्त शील पदार्थ पर निर्भर होता है।

विभिन्न प्रकार के फॉस्फर के प्रयोग से अलग – अलग प्रकार के रंगों की रोशनी प्राप्त की जा सकती है। जैसे – कैलिशयम टंगस्टेट से नीला, जिंक सिलिकेट से हरा, मैग्नीशियम टंगस्टेट से नीला सफेद, जिंक बेरिलियम सिलिकेट से पीला सफेद, कैडमियम सिलिकेट से पीला गुलाबी, कैडमियम बोरेट से गुलाबी। lab techniques in chemistry

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19:- च्यूइंगम मुंह में क्यों नहीं चिपकता है ?

च्यूइंगम चिकल नामक गोंद जैसे पदार्थ का बना होता हैं। कुछ विशेष उष्ण कटिबंधीय पेड़ों से चिकल को प्राप्त कर इसे सुवासित व स्वादिष्ट बनाया जाता है। चिकल की विशेषता यह है कि यह किसी भी गीले पृष्ठ पर बिल्कुल नहीं चिपकता है। यही कारण है कि हमारे मुंह में च्यूइंगम चिपकता नहीं है, जबकि अन्य सूखे पृष्ठों पर यह आसानी से चिपक जाता है।

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20:- एल्युमिनियम फाइल में रखा खाना देर तक गर्म क्यों रहता है ?

एल्युमिनियम धातु होने के नाते ऊष्मा का अच्छा चालक है परंतु पालिश किया गया या चमकाया गया एल्युमिनियम ऊष्मा को परावर्तित भी करता है। इसीलिए जब एल्यूमिनियम की पॉलिश की गई बहुत पतली पन्नी या वर्क में गर्म खाद्य वस्तु को लपेटा जाता है तो उसके अन्दर की ऊष्मा को वह अन्दर ही सीमित रखने में सहायक होता है और तो और यह खाद्य वस्तु से अधिक ऊष्मा भी ग्रहण नहीं करता है। इस कारण खाद्य वस्तु अपनी ऊष्णता खोकर शीघ्र ही ठण्डी नहीं होती। इसी कारण से एल्युमिनियम के वर्क या फाइल में लपेटा गया खाद्य पदार्थ पर्याप्त समय तक गर्म बना रहता है।

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21:- शरीर के किसी भाग में मोच आने से सूजन क्यों आती है ?

शरीर में कहीं भी मोच आने से इस भाग की कोशिकाएं वृद्धि करना शुरू कर देती हैं। जिसके परिणामस्वरूप सूजन आ जाती है। दरअसल यह सूजन प्रभावित अंग को उपप्रधान देती है। कोशिकाओं की इस आकस्मिक वृद्धि को हाइपर प्लैसिया कहते हैं। कोशिकाओं की बढ़ोतरी के अतिरिक्त इनके भीतर विशेष मात्रा में रक्तस्राव भी होता है।

खरोंचों, चोट लगने से काली हुई आंखों, फ्रैक्चर तथा फोड़े – फुन्सियों से आने वाली सूजन को मिथ्या – अंर्बुद कहते हैं। इनका उपचार ठंडे पैड या बर्फ की पोटलिया सूजे हुए भागो पर रखकर किया जा सकता है। इसके अलावा फ्रैक्चर में आधार के लिए दृढ़ बैंडेज का प्रयोग किया जाता है। lab techniques in chemistry

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22:- संतरे के छिलके का रस आंखों में पड़ते ही आंसू क्यों निकलते हैं ?

संतरे के छिलके के पृष्ठ के नीचे कुछ विशेष ग्रंथियां होती हैं जिनमें लिमोनीन व टर्पिन जैसे वाष्पशील तेल तथा सिट्रल, ऐल्डिहाइडद्व जिरेनिऑल, कैडिनीन और लिमेलूल जैसे विभिन्न रसायन विद्यमान होते हैं। ये सभी पदार्थ त्वचा को हानि पहुंचाने में सक्षम हैं। किन्तु आंखें इनके प्रति अधिक संवेदनशील होने से ये आंख में जाते ही तुरन्त प्रतिक्रिया करते हैं। सिट्रल ( निम्बु वंश ) के फलोद्यानों के कामगार उपरोक्त रसायनों के प्रति संवेदनशील होते हैं, वे अक्सर त्वक्शोध से पीड़ित रहते हैं।

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23:- मनुष्य के हाथ या पैर के सो जाने से क्या तात्पर्य है व ऐसा होने से इनमें झनझनाहट क्यों होती है ?

जब हमारा हाथ या पैर बहुत देर तक एक ही स्थिति में रहता है तो मस्तिष्क को संदेश ले जाने वाली तंत्रिकाओं के काम में बाधा पड़ती है। इसके अतिरिक्त उस भाग में कुछ देर के लिए रक्त की आपूर्ति भी रुक सी जाती है। यही अवस्था हाथ या पैर का सो जाना कहलाती है यह एक अस्थायी अवस्था होती है और स्थिति बदलते ही रुका हुआ रक्त प्रवाह फिर से आरम्भ हो जाता है जिसके कारण हमे उस भाग में झन – झनाहट सा महसूस होती हैं।

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24:- कुछ पक्षी बिना पंख फड़फड़ाए अधिक ऊँचाई पर लम्बे समय तक कैसे उड़ते रहते हैं ?

जो पक्षी बिना पंख फड़फड़ाए अधिक ऊँचाई पर लम्बे समय तक उड़ते रहते हैं वे वास्तव में वातावरण के उष्मीय वायु प्रवाह का उपयोग करते हैं। प्रारम्भ में ये पंक्षी पंख फड़फड़ाकर उड़ते हैं किन्तु वातावरण की इस ऊंचाई पर पहुंचते ही ये पंख फड़फड़ाना बंद कर देते हैं। lab techniques in chemistry

इसका अर्थ यह है कि उष्मीय वायु प्रवाह से निर्मित झोंकों से इन पक्षियों को स्वयं ही गति मिलती रहती है। ये पक्षी इस ऊंचाई को जानबूझकर छूते हैं ताकि इनकी कम – से – कम ऊर्जा व्यय हो। आपने देखा होगा कि जरा भी नीचे आने पर ये पुनः फड़फड़ाने लगते हैं। lab techniques in chemistry

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25:- किसी वस्तु को स्थिर पानी में फेंकने पर उत्पन्न तरंगें वर्गाकार या आयताकार न होकर वृत्ताकार होती हैं , क्यों ?

छोटी वस्तुओं को स्थिर पानी में फेंकने पर पानी में निर्मित विक्षोभ सभी दिशाओं में समान गति से चलता है। इससे एक समान तरंगों का निर्माण होता है जो हमें वृत्ताकार दिखाई देती हैं। यहाँ तक कि ईंट जैसी किसी वस्तु को पानी में फेंकने पर भी उत्पन्न तरंगें वृत्ताकार होती हैं किन्तु यदि आप किसी लम्बे डण्डे को पानी में पर जोर से मारते हैं तब पहले दीर्घायत तरंगों का निर्माण होता है। जो बाद में फैलकर वृत्ताकार में बदल जाती हैं।

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26:- जब हम दीया या लैम्प जलाते हैं तो प्रकाश निकलता है और स्टोव जलाने पर ऊष्मा | जबकि दोनों में मिट्टी का तेल प्रयुक्त होता है ? ऐसा क्यों ?

ऐसा नहीं है कि दीया सिर्फ रोशनी देता है और स्टोव केवल ऊष्मा। प्रायः इन दोनों साधनों से दो प्रकार की ऊर्जा निकलती हैं एक प्रकाश ऊर्जा व दूसरी ऊष्मा ऊर्जा। परन्तु होता यह है कि दीये से निकलने वाली रोशनी को हम प्रयोग करते हैं जबकि इसकी ऊष्मा पर ध्यान नहीं देते। ठीक इसी तरह स्टोव से निकली ऊष्मा का हम पूरा उपयोग करते हैं लेकिन प्रकाश को अनदेखा करते हैं। lab techniques in chemistry

वस्तुतः इसके लिए उत्तरदायी है इन उपकरणों की बनावट। स्टोव से अधिकतम ऊष्मा पाने के लिए इसमें वायु संचरण व ऊष्मारोधन की व्यवस्था भी की जाती है। ये सुविधाएं दीए व लैम्प में न होने से हवा का पर्याप्त उपयोग कर पाने में ये अक्षम होते हैं। यही कारण है कि दीयों का तापमान बहुत ही कम होता है।

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27:- सर्दी में शरीर के रोएँ खड़े क्यों हो जाते हैं ?

हमारी त्वचा पर पाए जाने वाले रोम शरीर की ऊष्मा को शरीर से बाहर निकलने से रोकते हैं। ठण्ड लगने पर हमारे शरीर के रोम खड़े हो जाते हैं। इस समय ये रोम हवा की अधिकाधिक मात्रा को अपने में फंसाकर एक जाल का निर्माण करते हैं। यह जाल तत्पश्चात शरीर के लिए रोधी पदार्थ का कार्य करता है। फलस्वरूप हमारे शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ठण्ड से बचाव करने के लिए ही रोम खड़े होते हैं, इससे शरीर को निरन्तर गर्मी मिलती रहती है। lab techniques in chemistry

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28:- नाखूनों में छोटे सफेद दाग क्यों पड़ जाते हैं ?

नाखून एक मृत ऊतक है। किन्तु इसके तले में जो सफेद अर्धचन्द्रांक जिसे लुन्युला भी कहते हैं, दिखाई देता है। वही नाखून का जीवित भाग होता है। यह नाखून को बढ़ाता है।नाखून के इस अर्धचन्द्रांक सफेद भाग पर यदि कोई चोट लग जाती है या टाइट जूते पहनने से इस पर दबाव पड़ता है तब यह चोट नाखून में छोटे – छोटे सफेद दागों के रूप में दिखाई देती है।lab techniques in chemistry

इसका अर्थ यह है कि नाखून के इन दागों का भाग उतना मजबूत नहीं है जितना कि शेष भाग। जैसे – जैसे नाखून बढ़ता है वैसे – वैसे सफेद दाग भी ऊपर की ओर बढ़ते हैं और अन्नतः पर्याप्त वृद्धि होने पर नाखून काटे जाने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।

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29:- फोटोकोमैटिक चश्मे के शीशे सूर्य के प्रकाश में काले क्यों हो जाते हैं ?

प्रकाश वर्णिक अर्थात् फोटोक्रोमैटिक चश्मों के लैंसों में सिल्वर हैलाइड के सूक्ष्म क्रिस्टल होते हैं। इन लैंसों में विद्यमान सिल्वर आयोडाइड व सिल्वर ब्रोमाइड में एक ऐसा गुण धर्म मौजूद होता है जिसके कारण सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क में आते ही ये आपस का बंधन तोड़कर अलग – अलग हो जाते हैं। lab techniques in chemistry

एक समय ऐसा आता है जब ये पूर्णतः बिखर जाते हैं। इस समय इनके छोटे – छोटे कण सम्पूर्ण लैंस को ढंग देते हैं। जिसके फलस्वरूप शीशा हमें काला दिखाई देता है। इसके विपरीत चश्मे को सूर्य के प्रकाश से हटाने पर बिखरे हुए सिल्वर तथा हैलाइट के ये सम्पूर्ण कण पुनः आपस में मिल जाते हैं। जिससे मूल सिल्वर हैलाइट का फिर से निर्माण होता है। और पुनः चश्मे के शीशे रंगहीन दिखाई देते हैं। lab techniques in chemistry

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30:- आकाश नीला क्यों दिखाई देता है ?

वायुमण्डल में मौजूद गैसों के अणु ही वास्तव में आसपास के रंग के लिए उत्तरदायी होते हैं। सूर्य का प्रकाश सात रंगों का मिश्रण होता है जिसमें लाल और पीले रंगों की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक और नीले एवं बैगनी रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे कम होती हैं। lab techniques in chemistry

आसमान नीला इसलिए दिखाई देता है क्योंकि गैसों के अणु कम तरंग दैर्ध्य वाले रंगों को अधिक छिटका देते हैं। जब वायुमण्डल में गैसे के अणुओं की अपेक्षा बड़े कण मौजूद होते हैं तो वे अधिक तरंग दैर्ध्य वाले रंगों को भी छिटका देते हैं। जिसे नीले रंग की तीव्रता कम हो जाती है तब आसमान हल्का नीला या दूधिया श्वेत दिखाई देने लगता है।

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