Best Hindi Story For Class 2 – Paropkari shatpatra kahani in hindi

Best Hindi Story For Class 2 - Paropkari shatpatra kahani in hindi
Best Hindi Story For Class 2

Best Hindi Story For Class 2 – Paropkari shatpatra kahani in hindi 

परोपकारी शतपत्र की कहानी इन हिंदी

एक जंगल था। उसमें शतपत्र नाम का कठफोड़ा पक्षी रहता था। वह केवल फल, फूल और पत्ते ही खाता था। जबकि दूसरे कठफोड़े कीड़े – मकोड़े खाते थे। यह देखकर सभी कठफोड़े हैरान होते थे। एक दिन एक कठफोड़े ने शतपत्र से कहा अरे शतपत्र, तुम कठफोड़ा होकर भी कीड़े – मकोड़े क्यों नहीं खाते ?

” शतपत्र ने कहा अपनी भूख मिटाने के लिए किसी को मारना मुझे अच्छा नहीं लगता। ” शतपत्र की बात सुनते ही वह कठफोड़ा ज़ोर से हँसा और उसका मज़ाक उड़ाने लगा। शतपत्र को उसका मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा, इसलिए वह दूसरे जंगल में चला गया।

परोपकारी षटपत्र – Paropkari shatpatra ki kahani

एक दिन शतपत्र पेड़ पर बैठा हुआ था। तभी उसे किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर – उधर देखा तो एक शेर पेड़ के नीचे लेटा – लेटा दर्द से तड़प रहा था। शेर को तड़पता देख शतपत्र को उस पर दया आ गई। वह उसके पास गया और बोला ” हे शेर राजा ! आपको क्या कष्ट है ? आप इस प्रकार क्यों कहर रहे हैं ?

मुझे बताइए शायद मैं आपके कुछ काम आ सकूँ। ” शेर बोला– ” अरे भाई ! तुम इतने छोटे – से तो हो, तुम मेरी क्या मदद करोगे ? ” तब शतपत्र बोला- ” शेर राजा, कुछ तो बताइए।” शेर राजा ने कहा- ” कल शाम को मुझे बहुत तेज भूख लगी थी। तभी मुझे एक हिरन दिखाई दिया।

मैंने जल्दी से उस हिरन का शिकार किया और खाने लगा। जल्दी – जल्दी में मैंने मांस के साथ – साथ हड्डी का टुकड़ा भी खा लिया। वही हड्डी का टुकड़ा मेरे गले में फँस गया है। न वह अंदर जा रहा है, न बाहर। उसी के कारण मैं दर्द से तड़प रहा हूँ।

शेर की बातें सनकर शतपत्र सोच में पड़ गया। सोचते – सोचते उसे एक उपाय सूझा। वह बोला- ” ठहरिए शेर राजा, मैं अभी एक लकड़ी का टुकड़ा लेकर आता हूँ। फिर उससे आपके गले में फंसा हड्डी का टुकड़ा बाहर निकाल दूंगा। ”

शतपत्र उड़कर गया और कुछ ही देर में एक लकड़ी का टुकड़ा ले आया। फिर उसने शेर से कहा ” शेर राजा, आप मुंह खोलिए। मैं यह लकड़ी का टुकड़ा आपके दांतों के बीच में फँसा दूंगा और फिर अपनी लंबी चोंच से हड्डी के टुकड़े को निकाल दूँगा।

शेर ने शतपत्र की बात मान ली। फिर शतपन्न शेर के मुँह में घुसा और उसने अपनी लंबी चोंच से हड्डी के टुकड़े को निकाल दिया। हड्डी का टुकड़ा बाहर निकलते ही शेर के गले का दर्द ठीक हो गया।

शेर ने शतपत्र को धन्यवाद दिया और कहा- “शतपत्र, आज तुमने मेरे गले में से हड्डी का टुकड़ा निकालकर मुझ पर बहुत उपकार किया है। मैं तुम्हें हमेशा याद रखूंगा।” फिर शतपत्र वहाँ से उड़कर चला गया।

जानते हो बच्चो, यह शतपत्र बोधिसत्व भगवान बुद्ध थे। जो अपने सभी जन्मों में दयालु, अहिंसक और परोपकारी थे।

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