Best Reading Comprehension Grade 7 – Maa Bete Ki Kahani

Best Reading Comprehension Grade 7 - Maa Bete Ki Kahani
Best Reading Comprehension Grade 7 – Maa Bete Ki Kahani

Reading Comprehension Grade 7 || Maa Bete Ki Kahani

माँ – बेटे का मिलान | Reading Comprehension Grade 7

एक समय की बात है। एक जंगल था उसमे बहुत से जानवर रहते थे। उस समय जंगल का वातावरण पूरी तरह से गर्म था। सूर्यदेव पूरे ताप से दहक रहे थे। जंगल के पोखर और तालाब सुखते जा रहे थे। पास ही बहती हुई नदी में घुटने भर भी पानी न रह गया था। जंगल में रहने वाले पशु – पक्षियों के प्यास बुझाने के लिए भी आजकल यही एक अकेला स्थान रह गया था।

शाम ढलने से पहले का समय था कि दो प्यासे हिरन हाँफते हुए नदी के तट की ओर जा रहे थे। तट पर जाकर वे जल पीने ही लगे थे कि अचानक पीछे से एक आदमी उन पर पत्थर मारने लगा। असमय की इस विपदा से घबराकर उन दोनों ने नदी में आगे की ओर दौड़ लगा दी। उनके पीछे भागते हुए वह आदमी भी नदी की जलधारा में छप्प से उतर गया और हिरनों की ओर दौड़ने लगा। एक हिरन जो अभी बच्चा था, एकाएक उसकी पकड़ में आ गया। उस हिरन के बच्चे को लेकर वह आदमी नदी से वापस बाहर निकल आया। सम्भवतः यही उसका मकसद था।

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उस हिरन के बच्चे को वह आदमी अपने घर ले आया और बड़े प्यार से पालने लगा। कुछ दिनों तक तो उसने उस बाल-हिरन के गले में रस्सी बाँधकर खूंटे से बाँधा। मगर जल्दी ही वह हिरन का बच्चा उस आदमी के बच्चों से इतना घुल-मिल गया कि फिर उसे बाँधकर रखने की जरूरत ही न रही। वह उस आदमी के परिवार का ही एक अंग बन गया, जैसे प्यार के कच्चे धागे से वह उन सबके साथ बँध गया हो। मगर उसका स्वभाव अभी भी वैसा ही चंचल था। हाव-भाव से वह कोमल था, इसलिए उस आदमी ने उसका नाम कोमल रख दिया था।

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कोमल अभी बहुत ही छोटा था, बिल्कुल नवजात शिशु जैता। उसकी सलोनी सूरत, चाँदनी-सा सफेद रोमों से भरा सुनहरा बदन था। वह इतना मनमोहक था की उस आदमी का पूरा परिवार ही उससे पूरी तरह घुल-मिल गया। खाने के लिए उसे कोई फल देता था तो कोई रोटी, कोई हरे-भरे साग देता था तो कोई उसे दूध पिलाता था। जल्दी ही वह खाने-पीते बड़ा होने लगा और आदमी के परिवार में रम गया।

इस दुनिया में संगत का असर किस पर नहीं पड़ा है? कोमल पर भी इसका असर हो रहा था। आदमी के बालकों जैसी शरारतें उसके अन्दर भी दिखाई देने लगी थीं। कोमल बच्चों की तरह ही घर में तोड़-फोड़ और नुकसान करने लगा। कभी वह बच्चों की किताबे फाड़ डालता, कभी कुछ सामान गिराकर तोड़ देता और कभी कपड़े मुँह में दबाकर खींचता और फाड़ डालता।

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कुछ दिन तक तो परिवार के लोग उसकी इन हरकतों को बचपन की शरारत मानकर छोड़ देते थे। मगर जब उसकी शरारतें लगातार बढ़ती ही चली गयी तो घर के लोग धीरे – धीरे उससे परेशान होने लगे। एक दिन उसकी बुरी आदतों से दुःखी होकर वह आदमी लोमल को, भरी दुपहरी में जंगल में नदी के किनारे वहीं छोड़ आया, जहां से वह उसे लाया था।

वह आदमी हिरन को छोड़ तो अवश्य आया था, पर उसके मन से हिरन अभी भी निकल नहीं रहा था। इसलिए वह दो-एक दिन बाद उसे देखने के लिए जंगल में जाता रहता था। उसने जंगल में कोमल को घूमते हुए ढूढ तो लिया, मगर उसे यह देखकर दु:ख हुआ कि कोमल की शरारत करने और उछल – कूद करने की वह आदत छूट गयी थी जो दूसरे हिरनों में होती है। कोमल नदी के सुनसान तट पर कभी झाड़ियों व कभी पेड़ों की ओट में अकेला चुपचाप पड़ा रहता था। इसका कारण था की इस तरह उसके आने से दूसरे हिरनों ने उसे पसन्द नहीं किया था।

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वे उससे शायद इसलिए नाराज रहते थे कि वह हिरनों के समाज को छोड़कर आदमी के साथ इतने दिन तक रहता रहा। एक हिरनी थोड़ी पर खड़ी उसे देख रही थी। कुछ पलों बाद वह भी दूसरी तरफ चली गयी। कुछ देर बाद वह हिरनी फिर आयी और दुबारा उसे ऐसे ही देखकर चली गयी। कोमल उस हिरनी को देखकर थोड़ी देर के लिए तो प्रसन्न होता था, मगर जैसे ही वह उससे मिले बिना लौट जाती थी, वह फिर उदास सा जमीन पर लेट जाता और अपना मुख आगे को टिकाकर कुछ सोचने लग जाता।

क्या वह हिरनी कोमल की माँ थी? कोमल अपने साथियों के झुण्ड से अलग-अलग क्यों रहने लगा? क्या उसके हिरन-समाज ने उसका बहिष्कार कर दिया था? मगर वह ऐसा क्यों कर रहे थे? क्या आदमी के सम्पर्क में रहने से कोमल अपनी जाति के गुणों और अपनी देह की गन्ध खो का था? निश्चित ही पशु-पक्षी जो एक-दूसरे को उसको गन्ध के कारण ही पहचानते और प्यार करते हैं, वह कोमल में नहीं रही थी। अब उसमें से उन्हें मनुष्य की गन्ध आती थी।

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यह सब सोचकर उस आदमी को बड़ा पछतावा हुआ। उसे लगा कि वह कोमल का अपराधी है। वह क्यों उसे ले गया? एक हिरन के बच्चे को अपने घर में अपने साथ रखकर उसे क्या मिला? उल्टे उसने कोमल के साथ यह खिलवाड़ किया, जिसके कारण उसके साथी हिरन उसे अपना नहीं पा रहे थे। मगर उसके मन में एक आशा जगी-कोमल की मानवी गन्ध यहाँ जंगल में रहकर जल्दी ही दूर हो जाएगी और तब उसकी माँ ही नहीं वरन् उसकी हिरन जाति उसे अपना लेगी और वह फिर से प्रकृति के अपने पुराने संसार में लौट जाएगा।

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गर्मी का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा था। तेज गर्मी से पेड़ों के पते व टहनियाँ, जंगल के पौधे और हरी घास सूख रही थी। पर्वत से गिरने वाले झरने और तालाच सूख रहे थे। बस एक वही नदी थी, जो उसी गति से बह रही थी। इस आग बरसाती गर्मी से चैन पाने के लिए, नील गायों और हिरनों के दल पहाड़ों के घने जंगलों से नीचे उतरकर, यहाँ नदी के आस-पास के रेतीले मैदानों में रात बिताने आने लगे। सुन्दर हिरनों के झुण्ड के झुण्ड यहाँ सुरक्षा की वजह से चक्रव्यूह-सा बनाकर सोते तो यह दृश्य देखने लायक होता था।

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झुण्ड के बीचोबीच शिशु और उनकी माताएँ तथा गर्भवती हरनियाँ विश्राम करनी थीं। उनके आसपास बूढ़े या कमजोर हिरन बेफिक्र होकर सोते थे। बीच-बीच में लगभग 8-10 मेटर की दूरी पर पहरा देने वाले हिरन तैनात रहते थे। इस तरह कुल 15-20 पहरेदार हिरन झुण्ड की चौकसी करते। इसके अलावा भी इस मण्डली से कुछ दूरी पर झाड़ियों में छिपकर भी चारों ओर पाँच-सात हिरन चौकस रहते थे, जो अचानक आने वाली आपत्ति को भांपकर सबको सावधान कर देते थे और घड़ी भर में सारे हिरन वहाँ से दौड़कर नौ दो ग्यारह हो जाते थे।

वह आदमी कई दिन से भोर होने से पूर्व घूमने आता था तो यह सारी व्यवस्था देखकर हैरान हो जाता था। सच तो यह था कि वह कोमल को ही देखने आता था, जो अभी भी उदास-उदास रहता था। आज ऐसे ही वह फिर दबे पाँव आया था, तो सारे हिरनों की चौकस व्यवस्था में सोते देखकर मन-ही-मन बोला-हे प्रभु! इन मासूम हिरनों की सुख-शान्ति को किसी की नजर न लगे। ऐसा न हो कि किसी दिन शेर आ जाये और …….” यह सोचते-सोचते उस आदमी के दिमाग में एक तरकीब सूझी। वह आप ही आप बोला-मुझे ‘भी तो इनको बचाने के लिए कुछ करना चाहिए।

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एक रात यही हुआ। शेर को जब पहाड़ियों पर भोजन नहीं मिला तो वह भी नीचे उतरकर नदी के तट पर आ गया। उसे यहाँ पर अपने लिए भोजन मिल जाने का विश्वास था। वह बड़ी सावधानी से दम साधे धीरे-धीरे तट पर आ पहुँचा। वहाँ आकर उसने सोती हुई हिरन मण्डली का सिर उठाकर, चारों ओर से निरीक्षण किया उसकी नजर अपने झुण्ड से अलग एक तरफ अकेले पड़े कोमल पर पड़ी। शेर झाड़ियों की ओट में से गुजरकर उधर ही चल पड़ा।

शेर कोमल के पास पहुँचकर उसको दबोचने के लिए छलाँग मारने ही वाला था कि मण्डली के बीच से तेज आवाज आयी, जो पूरे जंगल में गूंज उठी। हिरनों ने जिधर दिखाई दिया, उधर कुलांचे भरकर दौड़ लगा दी शेर ने कोमल पर छलाँग लगा दी और जैसे ही उस पर पंजा गड़ाना चाहा, कोमल उसकी पकड़ से बाहर निकल गया।

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देखते-ही-देखते सारे हिरन छू-मन्तर हो गये, केवल कुछ दूरी पर खड़ी कोमल की माँ उसे देखने के लिए रुकी रह गयी थी। कोमल के हाथ से निकलने के बाद शेर की नजर उस पर गयी। वह उसी की तरफ झपट पड़ा। हिरनी दूसरी तरफ दौड़ी। शेर उसके पीछे भागा। मगर यह क्या? कोमल अपनी जान की परवाह न कर अपनी माँ की तरफ भागा। हिरनी को दूर होते देख शेर फिर पलटकर कोमल की तरफ जाने लगा। कोमल इस बार भागा नहीं। वह सिर झुकाकर खड़ा हो गया। जैसे कह रहा हो—मेरे साथियों की नहीं, मेरी जान ले लो।

अपने हिरन साथियों के द्वारा ठुकराया जाकर मैं जी भी लूं तो क्या वह जीवन होगा? शेर उसकी तरफ झपटा। तभी पेड़ पर बैठे आदमी ने बड़ा-सा जाल शेर पर फेंका। शेर जाल में उलझ गया और उसी में फंसकर रह गया। आदमी पेड़ से उतर आया और जाल को बाँधकर शेर को कैद कर लिया। जब तक आदमी ने शेर को जाल में बाँधा, उतने समय में कोमल की माँ उसके पास आकर उसे दुलारने लगी वह आदमी हसरत भरी नजरों से माँ-बेटे के इस पुनर्मिलन को देखते रह गया।

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शिक्षा :- किसी भी जीवधारी को उसके परिवार या उसके स्वजातीय बान्धवों से कभी अलग नहीं करन चाहिए तथा वन्य पशुओं को भी संरक्षण प्रदान करना चाहिए।

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